उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा नाम है और वर्तमान में ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उद्धव महाराष्ट्र की राजनीति में 2002 से सक्रिय हुए है। राजनीति में आने से पहले उद्धव ठाकरे मराठी समाचार पत्र दैनिक हिंदू में बतौर पत्रकार काम करते थे। उद्धव को राजनीति उनके पिता बाला साहेब से विरासत में मिली है, मगर बीएमसी चुनाव-2002 के दौरान कड़ी मेहनत से इन्होंने शिवसेना को शानदार जीत दिलाई। इसके बाद 2003 में इन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत किया गया। उद्धव 2019 से 2022 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। पार्टी टूटने के बाद असली शिवसेना (उद्धव और शिंदे) दो भागों में बंट गई।
उद्धव ठाकरे की प्राथमिक शिक्षा मुंबई में स्थित बालमोहन विद्यामंदिर से हुई और स्नातक की पढ़ाई सर जमशेदजी जीजीभॉय स्कूल ऑफ आर्टमस कॉलेज से की। उद्धव ठाकरे ने बतौर फोटोग्राफर भी काम किया है। परिवार के कहने पर उद्धव ने राजनीति में कदम रखा और महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।
सन् 1989 में उद्धव ठाकरे और रश्मि ठाकरे की शादी हुई। रश्मि ठाकरे महाराष्ट्र की एक प्रमुख व्यवसायी रही हैं। उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की, मगर ऐसा कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे राजनीति में नहीं आना चाहते थे। अपनी पत्नी रश्मि ठाकरे के कहने पर उद्धव राजनीति में आए। रश्मि अपनी पार्टी (शिवसेना) से अच्छी तरह वाकिफ हैं और पार्टी के कई नेताओं के बीच उन्हें संगठनात्मक सूत्र के रूप में देखा जाता है। उद्धव और रश्मि के दो पुत्र (आदित्य और तेजस) हैं। आदित्य एक राजनेता और तेजस वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी करता हैं।
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की पत्रिका सामना के लिए बतौर संपादक के रूप में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की और शिवसेना की विचारधारा व नीतियों को आगे बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाई। 2004 में उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और पिता बाल ठाकरे की 2012 में मृत्यु होने के बाद शिवसेना की कमान उद्धव के हाथों में पूर्ण रूप से आ गई। उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरकर आयी और गैर-मराठी भाषी आबादी में भी शिवसेना का विस्तार करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
2003 में उद्धव ने ‘मी मुंबईकर’ (I am Mumbaite) नाम से एक अभियान चलाया, जो असफल रहा था। इसके बाद 2004 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना को मिली करारी हार की जिम्मेदारी उद्धाव ठाकरे के सिर डाल दी गई। 2005 में ठाकरे परिवार दो भागों में बंट गया। एक तरफ राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी बनाई, दूसरी तरफ उद्धव के लिए पार्टी को संभालना चुनौती भर होता गया। मगर उद्धव ने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते गए। 2012 ठाकरे परिवार के लिए बाला साहेब ठाकरे की मृत्यु के रूप में विशाल हानि लेकर आया और इसी साल शिवसेना बीएमसी का चुनाव जीत गई।
वर्ष 2014 के बाद उद्धव ठाकरे की राजनीति में बदलाव आया और उद्धव ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी सक्रियता और बढ़ा दी। उद्धव ने नवंबर 2019 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मई 2020 में विधान परिषद के माध्यम से विधानसभा पहुंचे। उद्धव ठाकरे ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है, जबकि इनके पुत्र आदित्य ठाकरे वर्ली विधानसभा सीट से विधायक है। आदित्य अपने परिवार के पहले सदस्य है, जिन्होंने जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ा है। महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का प्रभाव 1970 से रहा है। चाहे स्थानीय लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़नी हो या फिर भूमिपुत्र का नारा देकर लोगों के साथ कदम से कदम मिलाना हो। ठाकरे परिवार हमेशा स्थानीय लोगों के साथ खड़ा दिखाई देता है।
उद्धव राजनीति में आने से पहले फोटोग्राफी करते थे। इन्होंने 2004 में जहांगीर आर्ट गैलरी में अपने द्वारा क्लिक की गई महाराष्ट्र के विभिन्न किलों की फोटो के संग्रह का प्रदर्शनी लगायी थी। इससे पहले 1999 में अपनी पहली फोटोग्राफी प्रदर्शनी लगाई थी। इस प्रदर्शनी का नाम इन्होंने जियो और जीने दो रखा था। इसके अलावा इन्होंने दो फोटो-पुस्तकें (महाराष्ट्र देश-2010, पहावा विट्ठल-2011) प्रकाशित की हैं।
उद्धव ठाकरे की राजनीति पारी की शुरुआत 2002 के बीएमसी चुनाव से हुई थी। इसके बाद से उद्धव ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा है। इस दौरान उद्धव ने परिवार की टूट के साथ-साथ पिता की मृत्यु और पार्टी में फूट जैसी कई घटनाओं का सामना किया। पिता बाला साहेब ठाकरे ने 1966 में शिवसेना नाम से एक राजनीति पौधा लगाया। इस पौधे के सहारे बाला साहेब ने समस्त भारत में अपना एक अलग नाम बनाया और उद्धव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। मगर पार्टी नेताओं की बगावत के कारण उद्धव अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इस बगावत ने ना सिर्फ उद्धव की कुर्सी खायी बल्कि पार्टी को ही दो भागों में तोड़ दिया। शिवसेना का इतिहास बताता है कि पार्टी को कई बार टूट का सामना करना पड़ा है। चाहे वह 1995 में छगन भुजबल द्वारा 8 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ना हो, 2005 में नारायण राणे द्वारा 10 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ना हो या फिर 2006 में ठाकरे परिवार के (बाल ठाकरे के भतीजे) सदस्य राज ठाकरे द्वारा पार्टी छोड़नी हो। शिवसेना का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ने अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान प्रदेश के बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन और कृषि सुधारों पर जोर दिया और आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के उद्देश्य से कई नीतियाँ लागू की। जैसे- शिव भोजन थाली योजना आदि। उद्धव ठाकरे अपने शासन के दौरान कोविड-19 महामारी से निपटने और मुंबई में कथित अवैध ढांचों को गिराने सहित कई विवादों में शामिल रहे थे। वर्ष 2019 महाराष्ट्र में बाढ़ आई और प्रदेश के बुनियादी ढांचों को सुधारने के लिए उद्धव सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की खूब प्रशंसा हुई। उद्धव ठाकरे ने बतौर मुख्यमंत्री 943 दिनों तक अपना कार्यकाल चलाया।
उद्धव ने 2002 के बीएमसी चुनाव में अहम भूमिका निभाई और अपने बेहतर प्रबंधन से पार्टी को लाभ पहुंचाया। इससे उद्धव की एक प्रभावशाली राजनेता की छवि बनीं। इसके बाद उद्धव को पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका मिली और 2003 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। 2006 के बाद उद्धव शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक है। 2012 में पिता बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद 2013 से शिवसेना के प्रमुख का पद संभाल रहे हैं। उद्धव ने विदर्भ और महाराष्ट्र के किसानों के लिए ऋण राहत अभियान चलाया था। वर्ष 2019 में उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनें और वर्तमान में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के राष्ट्रीय अध्यक्ष है।
फोटोग्राफी मेरे लिए ऑक्सीजन की तरह है। कोई कुछ भी कहे मैं फोटोग्राफी नहीं छोड़ सकता हूँ। मैं सक्रिय ज्वालामुखी, अंटार्कटिक प्रदेश और माउंट एवरेस्ट की तस्वीरें कैमरे में कैद करना चाहता हूँ।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार इनकी कुल संपत्ति करीब 143.27 करोड़ से अधिक है। इस संपत्ति में खेती की जमीन, गैर-खेती जमीन, कमर्शियल बिल्डिंग, आवासीय भवन, बैंक जमा राशि, नकद-आभूषण आदि शामिल हैं।
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