यह तो सभी जानते हैं कि इस बार के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से अलग हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि इस बार पिछली बार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी शिवसेना इस बार विभाजित हो चुकी है और जहाँ एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना भाजपा के साथ है, पार्टी के संस्थापक रहे बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना भाजपा के खिलाफ होकर लड़ रही है।
भले ही इस बार ऐसे हालात हों लेकिन एक समय इन दोनों दलों ने मिलकर ही दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में राज कर रही कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया था और शिवसेना ने प्रदेश को अपनी पार्टी का पहला मुख्यमंत्री दिया था भाजपा के सहयोग से। महाराष्ट्र की राजनीति के इन करण अर्जुन की कहानी दिलचस्प है।
मराठी मानूस के हितों की रक्षा करने के मूल उद्देश्य से तब एक पोलिटिकल कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे ने साल 1966 में शिवसेना की स्थापना की।
पार्टी को उसका विधायक 1972 में मिला तथा शिवसेना की राजनीति में प्रासंगिकता बढ़नी शुरू हो गई लेकिन पार्टी मूलतः बॉम्बे (मुंबई) केंद्रित ही रही। इधर देश का राजनीतिक माहौल धीरे-धीरे बदल रहा था। जब शिवसेना एक राजनीतिक दल के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं हुई थी तो दहाड़ते हुए बाघ की तस्वीर उसका लोगो हुआ करता था। बाद में पार्टी उम्मीदवार अलग- अलग सिम्बल्स पद चुनाव लड़ते रहे। पूर्व में बॉम्बे ( मुंबई) में काफी समय तक शिवसैनिक और समर्थक इसी दहाड़ते हुए शेर के स्टिकर, झंडे अपने भवनों , प्रतिष्ठानों पर लगाते रहे हैं । 1980 में अटलबिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी सरीखे नेताओं की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ।
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने और इसके बाद भाजपा के बाहरी समर्थन से वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का गठन हुआ। भाजपा इस दौरान हिंदुत्व के रथ पर सवार हो गई, राम मंदिर के मुद्दे पर लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से रथ यात्रा की शुरुआत कर देश की राजनीति को सदैव के लिए बदल दिया।
ऐसे माहौल में जब 1990 में विधानसभा चुनाव हुए तो शिवसेना ने 52 सीटें जीतीं और भाजपा ने 42 सीटें जीतीं। इससे पहले के चुनाव 1985 में हुए थे तब शिवसेना खाता भी खोल नहीं पाई थी और भाजपा ने 16 सीटें जीतीं थीं। तो समझा जा सकता है कि शिव सेना और भाजपा एक दूसरे के अच्छे सहयोगी सिद्ध होने लगे थे।
दोनों पार्टियां मजबूत सहयोगी बनीं रहने और कांग्रेस को तगड़ी चुनौती देते रहे।
आखिर पांच साल बाद 1995 में वो समय आ गया जब महाराष्ट्र में पहली बार, शिवसेना भाजपा की गठबंधन सरकार का गठन हो गया।
शिवसेना के कद्दावर नेता मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा ने गोपीनाथ मुंडे को बनाया उप मुख्यमंत्री। ऐसा कहा जाता था कि इस गठबंधन में शिवसेना है बड़ा भाई और भाजपा है छोटा भाई।
इस सरकार ने अपना कार्यकाल लगभग पूरा किया और कुछ माह शेष रहते जल्दी चुनाव करवाए गए।
इधर देश की राजनीति में हलचल मची हुई थी। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से तीन नेता अलग हो गए। पी ए संगमा, तरीक अनवर और शरद पंवार। तीनों में मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन 1999 में किया और इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में 58 सीट्स प्राप्त की और उसकी मदद के बिना कांग्रेस के लिए सरकार बनाना मुश्किल हो गया।
शिवसेना भाजपा गठबंधन एक बार फिर विपक्ष में बैठा और कांग्रेस के विलासराव देशमुख ने शरद पंवार की पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाई। और इसके बाद शिवसेना भाजपा को सरकार बनाने का मौका ही नहीं मिला।
इस बीच बहुत समय बीत गया। न बाल ठाकरे रहे, न इस गठबंधन की मुश्किलों को दूर करने वाले प्रमोद महाजन भी नहीं रहे। अटल-आडवाणी का युग भी बीते कल की बात हो गया और प्रादुर्भाव हुआ मोदी युग का।
मोदी सुनामी के बीच जब 2014 में विधानसभा चुनाव हुए तो अपने अकेले के दम पर भाजपा ने 122 सीटें जीत लीं और शिवसेना को मिलीं सिर्फ 63 सीट्स।
यहीं से शिवसेना और भाजपा की पावर समीकरण बदल गए। भाजपा जो अभी तक छोटे भाई की भूमिका निभाती थी, इन चुनावों के बाद से बड़े भाई की भूमिका बन गई। महाराष्ट्र को पहली बार भाजपा का मुख्यमंत्री मिला। भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि संभवतः तबसे ही शिवसेना भाजपा के बढ़ते वर्चस्व को लेकर सशंकित हो गई होगी तथा यहीं से शिवसेना भाजपा के बीच खटास आनी शुरू हो गई होगी।
2019 में जब दोनों पार्टियों ने साथ में चुनाव तो लड़ा लेकिन शायद दोनों ही एक दूसरे के प्रति आशंकित थे। ऐसे समय भाजपा ने फिर सौ का आंकड़ा पार किया और 105 सीटें जीतीं तथा शिवसेना ने मात्र 56 सीटें। यानी पिछली बार से भी कम।
मुख्यमंत्री पद को लेकर रार के कारण इस बार भाजपा शिवसेना सरकार मुश्किल लग रही थी। स्टेलमेट के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस से अजीत पंवार ने दांव खेला और चाचा का दामन छोड़ कर भाजपा को समर्थन दे दिया तथा अलसुबह राजभवन में उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मुख्यमंत्री बने फडणवीस। यकीन सरकार चली नहीं और अजीत पंवार चाचा के पास वापस लौट आए। इस बार कांग्रेस, एनसीपी के सहयोग से शिवसेना ने अपनी सरकार बना ली और उद्धव, रिमोट से सरकार चलाने वाले ठाकरे खानदान के पहले व्यक्ति बने जो स्वयं मंत्रालय में बैठ कर सरकार चलाने लग गए।
पर महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर उलटफेर हुआ और 2022 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ उनके ही साथी एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी। भाजपा के साथ मिलकर सरकार भी बनाई और शिवसेना पर भी दावा कर दिया। यानी सत्ता पर तो कब्ज़ा किया ही, बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत पर भी अपना हक़ जता दिया।
शिंदे मुख्यमंत्री बने, और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फणडवीस ने उनके आधीन उप मुख्यमंत्री बनने से गुरेज़ नहीं किया। साथ ही अजीत पंवार चाचा का साथ एक बार फिर से छोड़कर उप मुख्यमंत्री बने।
भा.ज.पा और शिव सेना (उद्धव) की राहें जुदा हो चुकीं हैं। भाजपा आज भी हिंदुत्व के मुद्दे को प्रमुखता से उठाती है लेकिन उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना अब लिबरल मानी जाती है। भले ही शिंदे की शिव सेना को शिवसेना का धनुष बाण सिम्बल मिल चुका है और शिवसेना का नाम भी दिया जा चुका है और वो भाजपा की सहयोगी है, लेकिन उद्धव ठाकरे के नाम में लगा ठाकरे एहसास दिलाता रहता है कि बाल ठाकरे की विरासत उनके पास है।
सवाल पूछा जा रहा है कि क्या ऐसा समय आएगा कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना और भाजपा का कभी मेल हो सकेगा? क्या महाराष्ट्र की राजनीति के करण अर्जुन कभी साथ आएँगे?