राजस्थान हाईकोर्ट ने विधायक कंवरलाल मीणा को बड़ी राहत देने से इनकार कर दिया है। लोक सेवक पर हमले और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में मिली तीन साल की सजा को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई है। साथ ही कोर्ट ने उन्हें तुरंत निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।
घटना साल 2005 की है, जब मनोहर थाना क्षेत्र के खाताखेड़ी गांव में उपसरपंच चुनाव को लेकर तनाव पैदा हो गया था। आरोप है कि कंवरलाल मीणा अपने समर्थकों के साथ मौके पर पहुंचे और तत्कालीन एसडीओ रामनिवास मेहता को जान से मारने की धमकी दी।
सुप्रीम कोर्ट के लीली थॉमस बनाम भारत सरकार (2013) फैसले के अनुसार, यदि कोई सांसद, विधायक या विधान परिषद सदस्य किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की सजा सुनाई जाती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता अब खतरे में है?
कानूनी रूप से, तीन साल की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं, जब तक कि कोई उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय इस सजा पर रोक नहीं लगाता या इसे निरस्त नहीं करता।
वर्ष 2017 में धौलपुर के तत्कालीन विधायक बी.एल. कुशवाहा (बसपा) को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इसके चलते उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके बाद वहां उपचुनाव की घोषणा हुई थी। उस समय भाजपा ने उनकी पत्नी शोभरानी कुशवाहा को पार्टी उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी बनवारी लाल शर्मा को पराजित कर सीट जीत ली थी।
मार्च 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपनाम को लेकर 2019 में एक चुनावी रैली में दिए गए बयान के कारण दो साल की सजा सुनाई गई थी।
सजा के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां अदालत ने यह टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट द्वारा राहुल गाँधी को अधिकतम दो वर्ष की सजा देने के जो कारण बताए गए थे, वे "पर्याप्त आधार और कारणों से रहित" थे तथा इसके बाद उनकी मेम्बरशिप बहाल कर दी गयी थी । यह भी पढ़ें: खींवसर : कैसे ढहा बेनीवाल का मजबूत गढ़ ?