हार- जीत पर वैसे तो बहुत सी शेरो- शायरी कही गईं हैं लेकिन एक शेर की लाइनें "....शहर में तेरे जीत से ज्यादा, चर्चे तो मेरी हार के हैं..." खींवसर से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल की हार के संदर्भ में बहुत मुफीद कही जा सकती हैं.
राजस्थान में हुए विधानसभा उप चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है. कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी को मात्र- 1-1 सीट पर संतोष करना पड़ा है जबकि क्लियर कट एडवांटेज भाजपा का रहा है. इस चुनाव में सबसे अधिक रोमांच खींवसर विधानसभा के परिणाम को लेकर था क्योंकि यहाँ से अब तक बेनीवाल अपराजेय रहे थे और इस बार भाजपा पूरी तरह से दमखम दिखाने को तैयार बैठी थी. मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने तो इसे मूछों की लड़ाई बना दिया था और नतीजे आने के बाद उनका मूछों पर ताव देते हुए एक वीडियो भी वायरल हुआ है. एक तरह से यह चुनाव बेनीवाल और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका था.
पर जितनी चर्चा इस चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार रेवंतराम डांगा की जीत की हो रही है उससे अधिक चर्चाएं बीते दो दिन से बेनीवाल की हार ( उम्मीदवार कनिका बेनीवाल तो प्रतीकात्मक उमीदवार कही जा सकती है, एक तरह से हनुमान बेनीवाल खुद ही मैदान में थे ) की हो रही हैं. बेनीवाल के विरोधी कह रहे हैं कि विधानसभा आरएलपी मुक्त हो चुकी है. लड़ाई कांटे की रही. भाजपा के रेवंतराम डांगा ने 108628 वोट प्राप्त किए वहीं कनिका बेनीवाल ने 94727 मत हासिल किए .
2023 में हुए चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने 79492 वोट प्राप्त किए थे जबकि भाजपा के रेवंतराम डांगा ने तब 77,433 प्राप्त किए थे.
पर हार- जीत के इस खेल में एक नाम जिस पर अधिक राजनीतिक विश्लेषक बात नहीं कर रहे हैं वो नाम है दुर्गसिंह का.
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दुर्गसिंह वो नेता हैं जो जब जब खींवसर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में खड़े हुए, हनुमान बेनीवाल की राह आसान हुई. 2008 में जब खींवसर से हनुमान बेनीवाल पहली बार विधायक का चुनाव लड़ रहे थे तो दुर्ग सिंह बहुजन समाज पार्टी से मैदान में थे और दूसरे नंबर पर रहे.
फिर 2013 में एक बार फिर दुर्ग सिंह ने चुनाव लड़ा और 28 % मत प्राप्त कर द्वितीय स्थान पर रहे.
2018 में हनुमान बेनीवाल ने अपनी स्वयं की पार्टी बनायीं और जीते , 2023में एक बार फिर दुर्ग सिंह मैदान में आए और 7.6 % वोट लिए . इन सभी चुनावों में हनुमान बेनीवाल जीते .
परंतु इस बार खींवसर उप चुनाव से पहले दुर्ग सिंह को भाजपा अपने पाले में ले आई और अक्टूबर में दुर्गसिंह ने भाजपा ज्वाइन कर ली. नतीजा यह हुआ कि भाजपा और आरएलपी में तगड़ी मुठभेड़ हुई. कांग्रेस ने चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए रत्न चौधरी को खड़ा तो किया लेकिन वे मात्र 5454 मत ही प्राप्त कर सकीं.
खींवसर चुनाव में हनुमान बेनीवाल बनाम अन्य का नैरेटिव सेट हो चुका था. हनुमान आपके प्रचार के दौरान जानते भी थे कि इस चुनाव के परिणाम का सवार्धिक असर उनकी ही पार्टी पर होगा. यदि हारे तो विधानसभा से पार्टी साफ़ हो जाएगी. हुआ भी यही है. दबे छुपे सुरों में आरएलपी पर परिवारवाद का भी आरोप लग रहा था. 2019 में जब हनुमान बेनीवाल ने सांसद बनने के बाद सीट छोड़ी तो भाई नारायण बेनीवाल को टिकट दिया और वो जीत गए. इस बार जब सीट खाली हुई तो पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा .इससे यह नैरेटिव बना कि बेनीवाल सिर्फ अपने परिवार को मौका दे रहे हैं.
भाजपा की तरफ से बहुत आक्रामक प्रचार हुआ. मुख्यमंत्री से से लेकर कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और नेताओं ने रणनीति बनाई जबकि आरएलपी मात्र हनुमान बेनीवाल के करिश्मे के भरोसे थी. इस बीच कांग्रेस की तेजतर्रार नेता दिव्या मदेरणा ने भी बेनीवाल पर तंज कसा था. उन्होंने एक सभा में बेनीवाल का नाम लिए बगैर कहा था कि “आज क्या हालत हैं खींवसर में? हालत टाइट है....रात के 4- 4 बजे घूमकर लोगों के पैर पकड़ रहे हैं..”
आंकड़े दिखाते हैं कि खींवसर में कांग्रेस लगभग अप्रसांगिक होती जा रही है. इस उपचुनाव में कांग्रेस की रतन चौधरी को मात्र 5454 वोट मिले हैंऔर तीसरे नंबर पर रहीं. 2023 में तेजपाल मिर्धा कांग्रेस उम्मीदवार थे तब पार्टी को 27,763 वोट मिले थे.