आमतौर पर उपचुनाव को लेकर मतदाताओं में बहुत अधिक उत्साह नहीं देखा जाता है। उत्साह तब और भी कम हो जाता है जब विधानसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव के बीच एक साल से भी कम का फ़ासला हो।
राजस्थान में बुधवार को 7 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में मतदान हुआ। 6 सीटों पर तो जैसी उम्मीद थी, 2023 के मुकाबले मत प्रतिशत कम रहा लेकिन खींवसर सीट ऐसी रही है जहाँ मत प्रतिशत बढ़ गया है।
बताया जा रहा है कि खींवसर में इस बार तीन प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है। 2023 में जब विधानसभा चुनाव हुआ था तब 73% मतदान हुआ था और अब इस बार 76% मतदान हुआ है। राजनीतिक पार्टियां यह समझ नहीं पा रही हैं कि यह बढ़ा हुआ मतदान किसके पक्ष में हो सकता है। वैसे इन सातों सीटों के उपचुनाव का रोमांच लेवल देखें तो 6 सीटें एक तरफ और खींवसर चुनाव एक तरफ वाली फील रही है।
क्या यह बढ़ा हुआ मतदान हनुमान बेनीवाल की पत्नी और कैंडिडेट कनिका बेनीवाल के पक्ष में हुआ है या फिर ये भाजपा के पक्ष में हुआ है जिसके नेता और कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इसे मूंछ की लड़ाई बना दिया?
जब पिछली बार खींवसर में मतदान हुआ था तो बेनीवाल के लिए कांटे का संघर्ष हो गया था। बिलकुल बराबरी की फाइट चली थी कई राउंड्स की गिनती में और बेनीवाल को जीतने में बहुत जोर लगाना पड़ गया था। इस बार मत प्रतिशत बढ़ गया है, तो क्या कनिका बेनीवाल भाग्यशाली होंगी?
भाजपा के प्रत्याशी रेवंतराम डांगा ने बहुत मेहनत की है। उनके साथ ही, ज्योति मिर्धा ने भी कंधे से कंधा मिलाकर सघन चुनाव प्रचार किया है।
भाजपा के लिए खींवसर में जीत के क्या मायने हैं यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी यहाँ सभा की और हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस पर जमकर निशाने साधे।
कांग्रेस इस मुकाबले की तीसरी कड़ी है। डॉ. रतन कँवर ने मुकाबले में अपनी उपस्थिति दर्ज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
पर यहाँ का नतीजा कांग्रेस या भाजपा के नजरिए से नहीं देखा जाएगा। खींवसर में या तो हनुमान बेनीवाल की पुनः जीत होगी (पत्नी के जरिए) या हनुमान बेनीवाल की हार होगी।
खींवसर का चुनाव बेनीवाल परिवार के साथ-साथ, गोविंद सिंह डोटासरा का भी आंकलन करेगा। डोटासरा ही थे जिन्होंने बेनीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन को शुरुआत से ही नकारा और गेंद आलाकमान के पाले में डाली। यहाँ की हार-जीत डोटासरा की राजनीतिक एसीआर में अंकित होगी और कांग्रेस के अंदर और बाहर के गुटों की रणनीति का भी फैसला करेगी। वहीं ज्योति मिर्धा, काफी हद तक दिव्या मदेरणा, रेवंतराम डांगा सरीखे नेताओं का भविष्य भी खींवसर के परिणाम से जुड़ा हुआ है।