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ऋषि सुनक की हार के प्रमुख कारण

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प्रकाशित  05 जुलाई 2024

ऋषि सुनक की हार के पीछे कई प्रमुख कारण हो सकते हैं, जिन्होंने उनके राजनीतिक करियर पर नकारात्मक प्रभाव डाला। सबसे पहले, उनकी आर्थिक नीतियाँ और बजट योजनाएँ जनता के एक बड़े हिस्से को संतोषजनक नहीं लगीं। उच्च मुद्रास्फीति, बढ़ती बेरोजगारी, और महंगाई जैसे आर्थिक मुद्दों ने लोगों को उनके खिलाफ कर दिया। इसके अलावा, COVID-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संकट को संभालने के उनके तरीकों की भी कड़ी आलोचना हुई। धीमी प्रतिक्रिया और प्रबंधन में कमियों के कारण जनता का विश्वास उनसे उठ गया। अंततः, कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर आंतरिक कलह और विभाजन ने भी उनकी स्थिति को कमजोर किया, जिससे उनकी हार सुनिश्चित हो गई। एक एक कर के सभी कारणों को पढ़ते हैं।


ऋषि सुनक की हार के प्रमुख कारण


आर्थिक मोर्चे की विफलता

भारतीय मूल के ऋषि सुनक अपनी कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार में ब्रिटेन के आर्थिक मोर्चे पर विफल रहे हैं। सुनक की सरकार महंगाई कम करने और बढ़ते टैक्स को रोकने में नाकाम रही है। कंजर्वेटिव पार्टी के पास आर्थिक नीति, बढ़ती महंगाई, रहन-सहन के खर्चों में बढ़ोतरी को लेकर कोई ठोस नीति नहीं थी, जबकि लेबर पार्टी जनता के लिए नए घर बनाने को लेकर हाउसिंग नीति लेकर आई।

आम लोगों की नाराजगी

कंजर्वेटिव पार्टी को इस चुनाव में ना सिर्फ भारतीय मूल के लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा बल्कि ब्रिटेन के आम लोग भी ऋषि सुनक सरकार की नीतियों से नाराज थे। ब्रिटेन में भारतीय मूल के करीब 18 लाख वोटर्स हैं। करीब 65% भारतीय मूल के वोटर्स सुनक सरकार से नाराज थे। ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारतीय मूल के लोगों में एक उम्मीद जगी थीं, लेकिन सुनक उनके उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर पाए।

महंगाई और अपराध रोकने में विफल

जब ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने तो उनसे महंगाई रोकने की उम्मीद थी। मगर सुनक महंगाई रोकने में नाकाम रहे और उल्टा महंगाई बढ़ी। इससे सुनक सरकार के प्रति आम लोगों में गुस्सा बढ़ाने लगा और गुस्से का नतीजा इस चुनाव में दिखाई दिया है। सुनक सरकार पिछले कुछ वर्षों में आपराधिक घटनाओं को रोकने में विफल हुई, जिसका परिणाम यह हुआ कि इस चुनाव के दौरान सुनक सरकार पर विभिन्न प्रश्न खड़े किए गए। नतीजा सुनक सरकार को सत्ता गंवानी पड़ी।

टैक्स और रहन-सहन के खर्चों में इजाफा

सुनक सरकार के सत्ता में आने के बाद टैक्स में लगातार बढ़ोतरी देखने के मिली। इसके लिए सुनक सरकार ने कई तरह के टैक्स में बढ़ोतरी की, जिसमें एनआरआई टैक्स एक हैं। इसके अलावा कई आवश्यक चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, जिसकी वजह से आम लोगों को महंगाई का सामना करना पड़ा। इससे लोगों में जीवन यापन को लेकर चिंताएं दिखाई दी।

हाउसिंग और अवैध प्रवासी समस्या

इस बार ब्रिटेन में हाउसिंग एक बड़ी समस्या के रूप में चुनावी मुद्दा बना। सुनक सरकार इस समस्या का हल निकालने में विफल दिखी, जबकि लेबर पार्टी ने इस मुद्दे को चुनाव के दौरान खूब भुनाया और अपनी हाउसिंग स्कीम के तहत लाखों की संख्या में नये घर बनाने क रोड मैप जनता के साम ने रखा। इसके अलावा ब्रिटेन में अवैध प्रवासी समस्या भी बढ़ी है। इस समस्या पर जनता का मानना है कि सुनक सरकार अपनी सीमाओं को नियंत्रण करने में विफल रही है।

कंजर्वेटिव पार्टी का कमजोर नेतृत्व

ब्रेग्जिट के बाद कंजर्वेटिव पार्टी को लगातार नेतृत्व परिवर्तन और घोटालों का सामना करना पड़ा। कंजर्वेटिव पार्टी के 14 साल के कार्यकाल में ब्रिटेन को 5 प्रधानमंत्री देखने पड़े हैं जिसमें कोविड-19 प्रतिबंधों के दौरान पार्टीगेट जैसे विवाद आदि शामिल हैं। 2016 के ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह के समय से कारोबार में निवेश स्थिर हुआ है। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है।

अप्रवासियों को रवांडा भेजना

सुनक सरकार की कई नीतियों से लोग नाराज थे और उन्होंने अवैध आप्रवासन को अपना पसंदीदा मुद्दा बनाया। बिना दस्तावेज के अप्रवासियों को रवांडा भेजने की नीति को ब्रिटिश नागरिकों ने अमानवीय माना है। विपक्षी लेबर पार्टी ने इस मुद्दे पर सत्ता में बैठी सुनक सरकार के ऊपर खूब हमला किया।

लेबर पार्टी के वादे रहे प्रभावी

कोरोना के बाद से ब्रिटेन में आर्थिक संकट और महंगाई अपने चरम पर थी। इस चुनाव में लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर ने आर्थिक विकास का वादा किया और 14 सालों से सत्ता में रही कंजर्वेटिव पार्टी के पास आर्थिक विकास, महंगाई जैसे मुद्दों पर कोई बड़ी योजना नहीं दिखाई दी। इसके अलावा लेबर पार्टी ने कामकाजी लोगों के लिए टैक्स न बढ़ाने का वादा किया तो वही सुनक ने स्वास्थ्य सेवा में बदलाव और साफ ऊर्जा का वादा किया था।