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जानिए भारतीय न्याय संहिता के आपराधिक कानूनों में क्या-क्या बदलाव हुए हैं ?

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प्रकाशित02 जुलाई 2024

किसी भी समाज, राज्य और राष्ट्र को बेहतर बनाने के लिए एक कानून व्यवस्था होनी आवश्यक होती है। कानून व्यवस्था से समाज के अपराधों को कम किया जाता है और समय के साथ-साथ अपराधों के प्रकार बदलते हैं। इसलिए आपराधिक कानूनों में समय और सामाजिक जरूरत के अनुसार बदलाव करना बेहद जरूरी होता है।


प्राचीन भारत में कानून व्यवस्था हमारे धर्म शास्त्रों और रीति-रिवाजों के आधार पर चलती थी। इसके बाद मध्य काल भारत में मुगल (इस्लाम को मानने वाले) आगमन हुआ। मुगल अपने साथ अपना धर्म और लीगल सिस्टम भी लेकर आए। आपराधिक मामलों के लिए मुगलों ने शरीयत कानून लागू किया। इस कानून के तहत चोरी करने वाले के हाथ काट देने जैसी सजा और किसी की हत्या करना आपसी विवाद माना जाता था।


इसके बाद भारत में 1600 के आसपास अंग्रेजों की एंट्री होती है और 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और ओड़िशा के रेवेन्यू राइट्स मिल गए। सन् 1772 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने गवर्नर जनरल बनते ही नये कानून और कोर्ट बनाने की शुरुआत की। अंग्रेजों द्वारा 1834 में भारत का पहला लॉ कमीशन बनाया गया और इसका अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले बने थे। भारतीय दंड संहिता यानी IPC का पहला ड्राफ्ट मैकाले ने तैयार किया और 1853 में सर जॉन रोमिली की अध्यक्षता में भारत का दूसरा लॉ कमीशन लाया गया। सर जॉन रोमिली ने CPC यानी सिविल कानून लागू करने की प्रक्रिया से जुड़े नियम, CrPC यानी सजा देने की प्रक्रिया और उससे जुड़े नियम और IPC यानी अपराध के लिए क्या सजा से जुड़े नियम का ड्राफ्ट तैयार किया था।


सन् 1861 में सर जॉन रोमिली की अध्यक्षता में भारत का तीसरा लॉ कमीशन लाया गया और जिसमें इंडियन एविडेंस एक्ट (सबूतों-गवाहों से जुड़े नियम), इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट (नौकरी, खरीद-बिक्री से जुड़े नियम) और द ओथ एक्ट बनाए गए। इन कानूनों के आने के बाद लगभग भारत के क्रिमिनल लॉ का कोडिफिकेशन पूरा हो गया। इसके बाद 1879 में डॉ. व्हिटली स्टोक्स की अध्यक्षता में भारत का चौथा लॉ कमीशन लाया गया था, जिसमें परक्राम्य लिखतों की संहिता- 1881, ट्रस्ट कानून संहिता- 1882, संपत्ति और सुखभोग के हस्तांतरण संहिता- 1882, संशोधित दंड व सिविल प्रक्रिया संहिता-1882 लागू किए गए थे।


अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारतीय दंड संहिता यानी IPC करीब 170 सालों तक भारत में लागू रहीं। भारत सरकार द्वारा 2023 में समाज और समय की जरूरत के अनुसार नयी कानून व्यवस्था भारतीय न्याय संहिता कानून बनाया गया और 1 जुलाई 2024 को अंग्रेजों की भारतीय दंड संहिता को खत्म कर भारतीय न्याय संहिता लागू की गई है।


भारतीय दंड संहिता के बदले भारतीय न्याय संहिता क्यों लागू हुई ?

भारतीय दंड संहिता 1860 से हमारे देश में लागू थी और इसे अंग्रेजों द्वारा गुलाम भारतीयों के लिए बनाया गया था। आज हमारे देश को आजाद हुए करीब 77 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और सामाजिक अपराधों के प्रकार में कई बदलाव आ चुके हैं। ऐसे में समय और सामाजिक जरूरत के अनुसार आपराधिक कानूनों में बदलाव करना बेहद जरूरी हो जाता है।

भारतीय दंड संहिता-1860, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता-1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम- 1872 की जगह अब भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 कानून लागू हो गए हैं।


भारतीय न्याय संहिता में कई नए अपराधों को शामिल किया गया है। जैसे- शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 वर्ष की जेल और नस्ल, जाति-समुदाय, लिंग के आधार पर मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सजा, छिनैती के लिए 03 वर्ष की जेल और यूएपीए जैसे आतंकवाद-रोधी कानूनों को भी इसमें शामिल किया गया हैं।


भारतीय न्याय संहिता के लागू होने से क्या-क्या बदलेगा ?

  • शिकायत के तीन दिनों के अंगर एफआईआर दर्ज करनी होगी। जांच और सुनवाई के लिए 45 दिनों की समय-सीमा तय की गई है।

  • FIR अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) के माध्यम से दर्ज की जाएगी। यह प्रोग्राम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तहत काम करता है।

  • अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम के तहत लोग बिना पुलिस स्टेशन गए ऑनलाइन e-FIR दर्ज करा सकते हैं। जीरो एफआईआर किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज हो सकती है, चाहे अपराध उस थाने के अधिकार क्षेत्र में आता हो या फिर नहीं।

  • पहले केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड मिल जाती थी, मगर अब 60 से 90 दिन तक पुलिस रिमांड मिल सकती है।

  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली हरकतों को अपराध की श्रेणी (देशद्रोह) में डाला गया है, जबकि राजद्रोह कानून को हटा दिया गया है। इस अपराध में तलाशी और जब्ती की वीडियोग्राफी करना अनिवार्य कर दिया गया है।

  • आतंकवादी कृत्य पहले गैर-कानूनी गतिविधियां अधिनियम जैसे विशेष कानूनों का हिस्सा थे, मगर अब इन कृत्यों को भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है।

  • पॉकेटमारी जैसे छोटे-बड़े संगठित अपराधों के लिए पहले सभी राज्यों के पास अलग-अलग कानून थे, मगर अब सभी के लिए तीन साल की सजा का प्रवाधन किया गया है।

  • शादी का झूठा वादा करके सेक्स को विशेष अपराध के रूप में पेश किया गया है। इसके लिए 10 वर्ष तक की सजा का प्रवाधन किया गया है।

  • व्याभिचार और धारा-377 यानी समलैंगिक यौन संबंधित मुद्दों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, मगर अब इसे हटा दिया गया है।

  • अब सिर्फ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं, जबकि पहले एनजीओ व सिविल सोसाइटी ग्रुप भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर सकते थे।

  • अब जांच-पड़ताल में फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने की अनिवार्य बनाई गई है और सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग पर भी बल दिया गया है।

  • महिलाओं, पंद्रह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चों, 60 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों व दिव्यांग, गंभीर बीमारी से पीड़ितों को पुलिस स्टेशन आने से छूट दी जाएगी। मगर इन लोग इनके निवास स्थान पर ही पुलिस सहायता दी जाएगी।

  • दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी और मेडिकल रिपोर्ट 07 दिनों के अंदर देगी होगी।

  • किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद की सजा का प्रावधान जोड़ा गया है।

  • महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, जिसके तहत मामला दर्ज किए जाने के दो माह के अंदर जांच पूरी करनी होगी।

  • पीड़ितों को 90 दिनों के अंदर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार दिया गया है।

  • महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराध पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निःशुल्क प्राथमिक उपचार दिया जाएगा।

  • गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया गया है।

  • गिरफ्तार विवरण पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा जिससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्रों को महत्वपूर्ण सूचना आसानी से मिल पाएगी।

  • आरोपी और पीड़ित दोंनों को अब प्राथमिकी, पुलिस रिपोर्ट, आरोप-पत्र, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेज 14 दिनों के अंदर पाने का अधिकार दिया गया है।

  • अदालतें समय रहते न्याय देने के लिए मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए अधिकतम दो बार मुकदमे की सुनवाई स्थगित कर सकती है।

  • सभी राज्य सरकारों के लिए गवाह सुरक्षा योजना लागू करना अनिवार्य है, ताकि गवाहों की सुरक्षा व सहयोग सुनिश्चित किया जा सकें।

  • अब लैंगिकता की परिभाषा में ट्रांसजेंडर को भी शामिल कर दिया गया है। इससे समावेशिता और समानता को बढ़ावा मिलेगा।

  • पीड़ित को अधिक सुरक्षा देने व दुष्कर्म के किसी अपराध के जांच में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए पीड़िता का बयान पुलिस द्वारा ऑडियो-वीडियो के माध्यम से भी दर्ज किया जा सकेगा।