ब्लॉग
होम  /  ब्लॉग  /  क्षेत्रीय मुद्दों पर आधारित राजनीति में नई ताकत: जयराम महतो और मनोज जरांगे पाटील की कहानी
रिपोर्ट

क्षेत्रीय मुद्दों पर आधारित राजनीति में नई ताकत: जयराम महतो और मनोज जरांगे पाटील की कहानी

banner
प्रकाशित15 नवंबर 2024

ये कहानी दो युवा नेताओं की है जो पार्टी पॉलिटिक्स या पार्टी विचारधारा के दम पर नहीं, बल्कि पब्लिक मूवमेंट की राजनीति करने के कारण आज पूरे देश में जाने जाते हैं। ये न एनडीए के हैं, न इंडिया गठबन्धन के। लेकिन इन दोनों ही नेताओं के कारण एनडीए और इंडिया की चुनावी राजनीति प्रभावित हो रही है। दोनों ही नेताओं की ताकत उनका क्षेत्रीय भावनाओं से जुड़ा होना है और इसलिए उनके असंख्य समर्थक और प्रशंसक हैं। ये दोनों एक दूसरे से तकरीबन 1300 किलोमीटर दूर हैं, लेकिन इनकी लोकप्रियता इनके बीच का कॉमन फैक्टर है।

हम बात कर रहे हैं झारखंड के जयराम महतो और महाराष्ट्र के मनोज जरांगे पाटील की।

झारखंड और महाराष्ट्र में कोई साम्य नहीं है। मुद्दे अलग, सरकारें अलग, मौसम अलग, आबोहवा अलग, लेकिन एक कॉमन बात है - क्षेत्रीय मुद्दे के उभार। और यही इन दोनों राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा भी है, जिन्हें उठाने के कारण लाखों लोग इन दोनों युवाओं को अपना नेता मानते हैं और इनके फॉलोवर बन रहे हैं।


कौन हैं जयराम महतो ?

महतो ने संगठन बनाया हुआ है, जिसका नाम है झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM)। मात्र तीस वर्ष के महतो बताया जाता है कि पीएचडी में रेजिस्टर्ड हैं, यानी डॉक्टर बनने की राह पर हैं। उनका प्रभाव इतना है कि उन्हें टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। पिछले कुछ समय से वे भाषा, क्षेत्रीय और रोजगार के मुद्दे पर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं और युवाओं का उन्हें भरपूर समर्थन मिल रहा है। लोकसभा चुनाव में उनके संगठन ने गिरिडीह, रांची, कोडरमा, हजारीबाग, धनबाद जैसी सीटों समेत आठ सीटों पर चुनाव लड़ा। हालांकि उनका संगठन यह सारी सीटें हार गया।

महतो उसी कुर्मी जाति से हैं, जिसका बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण हिस्सा है तथा कई सीटों पर निर्णायक माने जाते हैं और इस बार 2 सीटों - डुमरी और बरमों से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

झारखंड सरकार ने दिसंबर 2021 में एक अधिसूचना जारी की, जिसके अंतर्गत राज्य के 11 जिलों में आयोजित राज्य स्तरीय परीक्षाओं में झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं जैसे भोजपुरी, मगही और अंगिका को वैकल्पिक भाषा के रूप में शामिल किया गया। इस फैसले के बाद, राज्य में भाषा को लेकर विरोध की लहर उठने लगी। स्थानीय युवाओं ने अपनी आपत्ति जताते हुए बोकारो, गिरीडीह और धनबाद जिलों में कई स्थानों पर प्रदर्शन किए। इन्ही प्रदर्शनों की आग से तपकर महतो निकले और देखते ही देखते प्रदेश की राजनीति में एक ख्यात नाम बन गए।

उनके बढ़ते प्रभाव से इंडिया गठबंधन और एनडीए दोनों ही असमंजस में हैं क्योंकि उनका संगठन कई सीटों पर चुनाव लड़ रहा है और कुर्मी जाति के वोटों का समीकरण अब बिगड़ सकता है।

जहां इनके बढ़ते प्रभाव से दोनों मुख्य गठबंधन झारखंड में सकते में हैं और इनके प्रत्येक कदमों को ध्यान से देख रहे हैं, वहीं वहां से तकरीबन 1300 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में मनोज जरांगे पाटिल ने महायुति और महाविकास अघाड़ी को अपनी-अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने पर विवश कर दिया है। मराठा रिजर्वेशन आंदोलन के पैरोकार मनोज जरांगे पाटिल के कारण बताया जा रहा है कि महायुति के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

पहले मनोज जरांगे पाटिल और उनके समर्थक चुनाव लड़ने का विचार कर रहे थे, लेकिन बाद में मनोज जरांगे पाटिल ने अपने समर्थकों से अपील की कि वो चुनावी मैदान से हट जाएं। वोटरमूड ने इनकी बायोग्राफी लिखी है, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। मनोज जारांगे पाटिल का मराठा वोटर में अच्छा प्रभाव है और उनके कहने मात्र से मतों का रुझान बदल सकता है, ऐसा स्थानीय नेताओं का भी मानना है। ये दोनों नेता ही युवा हैं और न भाजपा और न कांग्रेस से हैं, किसी और बड़े दल का भी साथ नहीं है, लेकिन चुनावी राजनीति के बीच इन दोनों नेताओं का नाम और ख्याति पूरे देश में फैल रही है।