आगामी उपचुनाव में प्रत्याशियों की घोषणा करते ही भाजपा बागियों की समस्या से घिर गई है और यह पार्टी के नए इंचार्ज राधामोहन दास अग्रवाल, नए अध्यक्ष मदन राठौड़ तथा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए एक और परीक्षा के तौर पर सामने आ चुकी स्थिति है।
लोकसभा चुनाव के समय मुख्यमंत्री शर्मा ने तत्कालीन अध्यक्ष सीपी जोशी तथा भाजपा से बगावत कर निर्दलीय विधायक बने चन्द्रभान सिंह आक्या के बीच मेलमिलाप करवाया था।
वहीं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तथा शेरगढ़ विधायक बाबू सिंह राठौड़ के बीच भी सुलह सीएम ने करवाई थी।
तो ऐसे में अब चाहे झुंझुनू से बबलू चौधरी हों या रामगढ से जय आहूजा , भाजपा के प्रदेश आलाकमान को ही इस असंतोष की चिंगारी से निबटना पड़ेगा।
चूँकि भाजपा की प्रदेश में सरकार है ऐसे में इन बागियों से समझौता करने में कोई ख़ास मुश्किल नहीं होनी चाहिए क्योंकि राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा अभी खुलना बाकी है। सरकार चाहे तो इन नेताओं को बोर्ड तथा कॉर्पोरेशंस में चैयरमेन इत्यादि पोस्ट्स से नवाज़ सकती है।
रोचक बात यह है कि 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के समय रामगढ़ से जय आहूजा तो पार्टी के अधिकृत कैंडिडेट थे जबकि सुखवंत सिंह ने तब बगावत की था और आज़ाद समाज पार्टी से चुनाव लड़े थे तथा 74,069 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। तब आहूजा को भाजपा कैंडिडेट के तौर पर 34,882 वोट मिले थे और वो तीसरे स्थान पर थे।
इस बार स्थिति उलट गई है और अब सुखवंत सिंह भाजपा के कैंडिडेट हैं जबकि आहूजा बगावत की राह पर निकल पड़े हैं।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति झुंझुनू की है जहां से भाजपा ने राजेंद्र भांबू को टिकट दिया है। इसे नाराज़ होकर निशीत चौधरी ( बबलू चौधरी ) ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर ताल ठोकने का फैसला किया है और सोशल मीडिया पर अपना जनसम्पर्क कार्यक्रम भी डाल दिया है।
पिछले चुनाव में बबलू चौधरी भाजपा कैंडिडेट थे तथा दूसरे नंबर पर थे वहीं भांबू निर्दलीय प्रत्याशी थे तथा तीसरे नम्बर पर रहे थे ।