लद्दाख क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा और कम आबादी वाली केंद्रशासित प्रदेश है। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम- 2019 के पारित होने पहले लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा हुआ करता था। 31 अक्टूबर 2019 को भारत सरकार द्वारा लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। इसके बाद से लद्दाख में राजनीतिक हलचल तेज होने लगी और स्थानीय नेताओं, समाजिक संगठन व आम जनता लद्दाख को पूर्ण केंद्रशासित प्रदेश या पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए आंदोलन करने लगी। तब से लद्दाख का मुद्दा लगातार भारतीय राजनीति में बना हुआ है।
2011 की जनगणना के अनुसार- लद्दाख के लेह जिले में बौद्ध 39.65%, इस्लाम 46.41% और हिंदू 12.11% को मानने वाले और कारगिल जिले में बौद्ध 14.29%, मुस्लिम 76.87% और हिंदू 7.34% थे। लद्दाख की आबादी लेह और कारगिल जिलों में बंटी हुई है। कारगिल में मुस्लिम (शिया) आबादी अधिक है तो लेह में बौद्ध (चांगपा, ब्रोक्पा, लद्दाखी, तिब्बती मूल के बौद्ध) आबादी अधिक है।
सीमा क्षेत्र की दृष्टि से- लद्दाख भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि इसके पूर्व में चीन-तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, पश्चिम में जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान प्रशासित गिलगित-बाल्टिस्तान, दक्षिण में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में काराकोरम दर्रा है। पिछले कुछ सालों से चीनी सेना का लद्दाख में लगातार गतिरोध दिखाई देता है। इससे भारत-चीन के रिश्तों में भी असर पड़ा है।
जलवायु की दृष्टि से- लद्दाख का जलवायु काफी कठोर रहता है। लद्दाख पृथ्वी के सबसे ऊंचे और सूखे स्थानों में से एक है। हिमालय के करीब होने के कारण यहां काफी सर्दी रहती है। आर्कटिक और रेगिस्तानी जलवायु के मिश्रण के कारण लद्दाख के जलवायु को ठंडे रेगिस्तान के रूप में भी जाना जाता है। लद्दाख का न्यूनतम तापमान -40 डिग्री और अधिकतम तापमान +35 डिग्री रहता है।
इसके तली और सिंचित क्षेत्रों को छोड़कर सारा क्षेत्र वनों से रहित है। सिंधु नदीं के साथ-साथ यहां श्योक-नुब्रा, चांग चेनमो, हानले और सुरू सहित अन्य नदियां बहती है।
लद्दाख प्राकृतिक संसाधनों से भरपुर है और हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब सहित राजस्थान के करोड़ों लोगों को जल संसाधन प्रदान करता है। इसके अलावा लद्दाख सौर विकिरण, पर्यटन उद्योग, भू-तापीय संसाधन, राष्ट्रीय राजमार्ग, एशिया को राजनीतिक व आर्थिक रूप से जोड़ने, मध्य एशियाई बाजारों तक पहुंच बनाने और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र के हिसाब से भारत (मध्य एशिया) के लिए काफी अहम क्षेत्र माना जाता है।
लद्दाख के जाने-माने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लद्दाख की विभिन्न मांगों को लेकर अनशन के बाद 1 सितंबर 2024 से 75 स्वयंसेवकों के साथ लद्दाख से दिल्ली तक की “दिल्ली चलो पदयात्रा” पर निकले हैं। सोनम की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए और लद्दाख को अपनी जमीन, सांस्कृति पहचान की रक्षा करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां मिलें।
अगर लद्दाख की मांगों को केंद्र सरकार द्वारा नहीं माना गया तो सोनम वांगचुक और उनके साथी दिल्ली राजघाट पर धरना देंगे।
2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के बाद भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो भागों में बांटने का फैसला किया। एक तरफ जम्मू-कश्मीर को विधानमंडल वाले केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज दिया तो वही लद्दाख को बिना विधानमंडल वाले केंद्र शासित प्रदेश का दर्ज दिया।
केंद्र सरकार के इस पक्षपात को लेकर लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और आम जनता अपने मांगों को लेकर सड़कों पर उतर कर अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रही हैं। आज जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे है और लद्दाख अपनी मांगों के साथ वही खड़ा दिखाई देता है।
सोनम वांगचुक लद्दाख के पर्यावरण को लेकर चिंता जताते हुए कहते है
“हम लद्दाख की पहाड़ियों को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। भारतीय संविधान में एक विशेष प्रावधान है, जिसे अनुच्छेद-244 की छठी अनुसूची कहा जाता है। यह अनुसूची लद्दाख जैसे जनजातीय क्षेत्र के लोगों और वहां की संस्कृतियों को सुरक्षा प्रदान करता है और साथ ही वहाँ ये निर्धारित कर सकता है कि इन स्थानों को दूसरों के हस्तक्षेप के बिना कैसे विकसित किया जाना चाहिए। यही सब कुछ है जिसकी हम मांग कर रहे हैं। छठी अनुसूची के बगैर तो यहां होटेल्स का जाल बिछ जाएगा। लाखों लोग यहां आएंगे और जिस तहज़ीब को हम सालों से बचाते आ रहे हैं, उसके खोने का खतरा पैदा हो जाएगा।”