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रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव: क्या सुखवंत बनाम जुबैर खान परिवार की बिछेगी बिसात ?

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Published  02 October 2024

राजस्थान के रामगढ़ विधानसभा में होने वाला उपचुनाव एक बार फिर से भाजपा के लिए यक्ष प्रश्न होगा कि क्या सुखवंत सिंह को मौका दिया जाए या किसी अन्य कैंडिडेट को इस बार मैदान में उतारा जाए ?

भाजपा इस सीट पर पिछले दो चुनावों (2023 और 2018) से कांग्रेस पार्टी (ज़ुबैर खान परिवार) से हार रही है। सुखवंत सिंह को भाजपा ने 2018 में अपना उम्मीदवार बनाया था और सुखवंत ने 38.28% वोट प्राप्त किए थे, लेकिन वो साफिया ज़ुबैर से हार गए। साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ज़ुबैर खान ने 44.4% वोट लेकर जीत दर्ज की थी। अब उनके देहांत होने से इस सीट पर उपचुनाव होंगे। 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा से बागी होकर सुखवंत सिंह ने आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के टिकट से चुनाव लड़ा, जिसमें इन्हें 35.08% वोट मिले और दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा के जय आहूजा को 16.5% वोट के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

क्या यह रोचक नहीं है कि जब 2018 में सुखवंत सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे, तब उन्हें इस सीट पर 38.28% वोट मिले और भाजपा से अलग होकर 2023 में आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) से लड़ने पर 35.1% वोट मिले थे। हारे दोनों ही बार मिली, लेकिन 2023 में भाजपा को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि घर वापसी कर चुके सुखवंत सिंह को यदि भाजपा से मौका मिलता है तो वो जीत दर्ज कर पाएंगे ?


वैसे भाजपा से इस बार जय आहूजा, अलवर के पूर्व विधायक बनवारी लाल सिंघल जैसे और भी नाम हैं जो रामगढ़ से टिकट की उम्मीद लगाए हुए हैं। लेकिन सुखवंत सिंह लगातार दो चुनाव लड़ने के बाद बेहतर स्थिति में बताए जा रहे हैं। कभी ज्ञानदेव आहूजा के निकट रहे सुखवंत सिंह को 2018 में भाजपा ने आहूजा का टिकट काट कर ही उम्मीदवार बनाया गया था।


वर्ष 2009 में भाजपा से लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के प्रधान चुने गए सुखवंत सिंह को भाजपा से इस उपचुनाव में टिकट मिलता है या नहीं यह देखने वाली बात होगी। और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) पिछली बार दूसरे स्थान पर रहने के बाद इस बार उपचुनाव में क्या करती है यह भी राजनीतिक विशेषकों के लिए बहस का विषय हो सकता है। 2017 के रकबर मॉब लिंचिंग मामले को लेकर देशभर में चर्चा में आए रामगढ़ का यह उपचुनाव ज़ुबैर खान परिवार के लिए भी एक बड़ा राजनीतिक फैसला लेकर आएगा और इस फैसले से ज़ुबैर खान परिवार का राजनीति भविष्य तय होगा।