हरियाणामें विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ने औरजीती बाजी हारने केबाद, इंडिया गठबंधन के रोष काशिकार हुई कांग्रेस क्याअब राजस्थान विधानसभा उप चुनाव मेंवापस इंडिया गठबंधन के अन्य साथियोंके चुनाव लड़ सकती है ? यह सवाल पिछले दोदिनों से राजनीतिक हलकोंमें पूछा जा रहाहै।
राजस्थान की 7 विधानसभा सीटें जहाँ चुनाव होने जा रहा है उनमें से 5 सीटें वहां के विधायकों के सांसद बनने से रिक्त हुई थीं, खींवसरविधानसभा सीट उस नागौरलोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैजहाँ से हनुमान बेनीवालने इंडिया गठबंधन के कैंडिडेट केतौर पर चुनाव जीताथा। तथा खींवसर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस कैंडिडेट के मैदान में होने के बावजूद बेनीवाल ने विधानसभा सीट जीत ली थी। चौरासी विधानसभासीट भी राजकुमार रोतके बांसवाड़ा - डूंगरपुर सांसद बनने के कारणखाली हुई थी जहाँसे कांग्रेस ने उनकी पार्टीBAP को समर्थन दियाथा। नतीजा यह हुआ किकांग्रेस और गठबंधन कालोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शनरहा और भाजपा को25 में से 14सीटों पर ही संतोषकरना पड़ा था जबकिइसके पहले लगातार दोलोकसभा चुनाव में भाजपा नेविपक्ष को क्लीन बोल्डकिया था और 25 की 25 सीटें ( गठबंधन के साथ) जीतीथीं।
सारयह कि गठबंधन होनेके कारण ही विपक्षभाजपा के लगातार क्लीनस्वीप की हैटट्रिक को रोक पाया था।
लोकसभाचुनाव के बाद, गठबंधनमें वैसा जुड़ावनहीं दिखा। समयसमय पर इन दलोंने नेताओं ने ऐसा कोईइंडिकेशन भी नहीं दियाकि उपचुनाव में मिलकर भाजपासे मुकाबला किया जाएगा।
राजस्थानविधानसभा में विपक्ष केनेता टीकाराम जूली का समयसमय पर बयान आयाहै कि गठबंधन काफैसला आलाकमान करेगा तथा उनकी पार्टीकी सातों सीटों पर तैयारी है। वहीं पीसीसी अध्यक्ष डोटासरा का भी एक बयान आया कि - गठबंधन पार्टी आलाकमान करता है और इस पर कोई फैसला होता है तो उसकी पूरी पालना की जाएगी।
पिछलेकुछ सालों का विधानसभा उपचुनावके नतीजों का रिकॉर्ड देखेंतो यह कांग्रेस केपक्ष में दिखता है। परंतुलोकसभा चुनाव के बाद सेराजनेतिक परिस्थितियां तेजी से बदलीहैं। यहभी दीगर है किभजनलाल शर्मा सरकार के लिए यहउप चुनाव परीक्षा की घड़ी है। इनउप चुनावों में भाजपा कीहार जीत को भजनलालसरकार के प्रदर्शन केपैमाने पर देखा जाएगालेकिन इससे कांग्रेस कीचुनौती कम नहीं होती।
अन्यविपक्षी दल देखेंगे किकांग्रेस का गठबंधन कोलेकर क्या रुख रहताहै। क्या कांग्रेस कीरूचि नरेंद्र मोदी सरकार केखिलाफ केंद्रमें गठबंधन करने में हीहै और वो राज्योंमें अन्य विपक्षी दलोंको स्पेस देनेमें संकोच करती है ?
या फिर वो लॉन्गटर्म सोच के साथएक मजबूत मोर्चा बनाना चाहती है और इसकेलिए राज्यों में भले हीकुछ सामंजस्य करना पड़े, समझौतेकरने पड़े तो वोत्याग के लिए तैयारहोगी ?
कभीकभी लगता है किकांग्रेस खुद कंफ्यूज हैकि वो चाहती क्याहै ? कभी एकला चलोका नारा देने वालीकांग्रेस को उन पार्टियोंसे भी समझौते करनेपड़े हैं जिन्होंने उसकीस्थिति को कमजोर कियाहै और सत्ता सेहटाया ही है जैसेआम आदमी पार्टी जिसनेउसे दिल्ली से हटाकर सत्ताली या शरद पंवारकी एनसीपी जो महाराष्ट्र मेंकांग्रेस के सामने बिगब्रदर की भूमिका मेंहै। ममताबनर्जी कि तृणमूल नेतो कांग्रेस को बंगाल मेंराजनीतिक तौर पर अप्रासंगिकबना दिया है।
राजस्थानमें होने वाले उपचुनावमें कांग्रेस को यह भीदेखना होगा कि आगेचलकर BAP या RLPकुछ क्षेत्रों में कांग्रेस काही विकल्प न बन जाएं।