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देवली-उनियारा: गुर्जर-मीणा से परे, क्या किसी अन्य जाति पर दांव खेल सकती है भाजपा ?

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Published  02 October 2024

पिछले तीन विधानसभा चुनाव यानी लगभग पद्रह सालों से मीणा और गुर्जर राजनीति का केंद्र बनी देवली-उनियारा सीट में इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी उप-चुनाव में भाजपा क्या किसी नॉन गुर्जर/ मीणा पर दांव खेल सकती है ? सवाल यह भी है कि क्या भाजपा के अनुभवी नेता प्रभुलाल सैनी की चुनावी राजनीति में देवली-उनियारा के जरिए वापसी हो सकती है ?

असल में 2008 से ही इस सीट पर या तो मीणा या फिर गुर्जर कैंडिडेट लड़े और जीते हैं। 2008 में कांग्रेस ने रामनारायण मीणा को मैदान में उतारा था और भाजपा ने नाथू सिंह गुर्जर को। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मीणा जीते। फिर 2013 में कांग्रेस ने रामनारायण मीणा को उतारा और भाजपा ने राजेंद्र गुर्जर को। इस बार बाजी भाजपा के हाथ लगी।

साल 2018 में कांग्रेस के हरीश मीणा ने भाजपा के राजेंद्र गुर्जर को मात दी और पिछले साल 2023 में कांग्रेस के हरीश मीणा ने दुबारा विजय दर्ज करते हुए भाजपा के विजय बैंसला जो कि गुर्जर आंदोलन के प्रणेता कर्नल बैंसला के पुत्र हैं, उन्हें हराया।

हरीश मीणा के टोंक-सवाईमाधोपुर का सांसद बनने के बाद अब इस सीट पर उपचुनाव होंगे। शुरुआत में प्रभुलाल सैनी का उल्लेख करने का कारण है. वह यह है कि भले ही आज इस सीट पर ऐसा लगता है कि गुर्जर-मीणा का वर्चस्व है लेकिन इस सीट पर माली समाज के भी लगभग 50 हजार वोट हैं।

परिसीमन से पहले, 2003 में प्रभुलाल सैनी तब के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह जो कि कांग्रेस से खड़े हुए थे उन्हें पराजित कर चुके हैं। ये सैनी वोट किसी भी कैंडिडेट की हार जीत पर निर्णायक हो सकते हैं। कांग्रेस की इन सालों में मीणा और गुर्जर दोनों ही जातियों में पकड़ मजबूत हुई है। भाजपा ने पिछली बार विजय बैंसला के तौर पर गुर्जर कैंडिडेट उतारा था लेकिन उन्हें हार नसीब हुई।

बैंसला की हार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वे उन कर्नल किरोड़ी बैंसला के पुत्र हैं जिन्होंने गुर्जर समाज के लिए आरक्षण का बड़ा आंदोलन किया। वैसे कर्नल बैंसला खुद भी टोंक-सवाईमाधोपुर से लोकसभा चुनाव (2009) हार चुके थे। इसी लोकसभा चुनाव में देवली-उनियारा विधानसभा से वो लगभग 5 हजार वोट से हारे थे।

देवली उनियारा विधानसभा सीट पर हिंडोली का भी प्रभाव पड़ता है, जहाँ से प्रभुलाल सैनी (2008 में) चुनाव जीत चुके हैं। जबकि पिछली बार हिंडोली से ही 82,350 वोट तथा 36.6% वोट लेकर परास्त हो चुके हैं। ऐसे में यदि भाजपा इस बार प्रभु लाल सैनी पर या किसी अन्य माली कैंडिडेट पर दांव लगाती है तो उसे फायदा हो सकता है ऐसा चुनावी विशेषज्ञों का मानना है। एक तथ्य यह भी है कि यहां अधिकतर बाहरी उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं।

इधर कांग्रेस संभवतः कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी के नज़दीकी सहयोगी तथा यूपी कांग्रेस के सहप्रभारी धीरज गुर्जर को मौका दे सकती है। भीलवाड़ा का जहाजपुर जो कि इस विधानसभा क्षेत्र पर असर डालता है। धीरज गुर्जर वहां से विधायक रह चुके हैं तथा आज भी उनके परिवार का क्षेत्र की राजनीति में अच्छा प्रभाव है।